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डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के दस प्रेरणादायक किस्से

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के दस प्रेरणादायक किस्से

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के दस प्रेरणादायक किस्से


1.    फर्श से अर्श तक का सफर - एपीजे अब्दुल कलाम ने एक गरीब परिवार में जन्म लिया था। उनकों अपनी पढ़ाई के लिए रामेश्वरम में अखबार तक बेचने पड़े। बचपन से उन्होंने बड़े सपने देखे। वे पायलट बनना चाहते थे। लेकिन पायलट के लिए होने वाली परीक्षा में महज एक स्थान से चूक गए। चूंकि उनकों अंतरिक्ष पसंद था। इसलिए उन्होंने अपनी पसंद को ही अपना कैरियर बनाने के लिए चुना। उन्होंने एयरोनोटिक्स की पढाई की। और उसके बाद अपनी प्रतिभा के दम पर इसरों, डीआरडीओ, भारत सरकार के सलाहकार, और राष्ट्रपति के पद तक पहुचें। उनके इस सफर को पूरे भारत और विश्व ने देखा और प्रेरणा ली कि सपने देखना वास्तव में जरूरी है। कलाम साहब कहा करते थे कि अगर आप चाहते है कि आप सफल हो, इसके लिए आपको पहले इसका सपना देखना होगा।



2.    ज्ञान को फैलाने का दृढ संकल्प- अब्दुल कलाम ने शिक्षक के तौर पर अपनी आजीविका शुरू की और अपनी अंतिम सांस भी आईआईएम शिलांग में एक लेक्चर देते हुए ली। अब्दुल कलाम साहब को सर्वाधिक आनंद ज्ञान को बांटने में ही आता था। इसलिए वे अधिकांशतः विद्यार्थियों के बीच जाना पसंद करते थे। उनका मानना था कि बालक स्वभाव से जिज्ञासु होते है, और इस तरह वे विश्व के पहले वैज्ञानिक भी होते है क्योंकि आविष्कार सबसे पहले प्रश्न से ही शुरू होता है। अब्दुल कलाम को बच्चों के प्रश्नों का जवाब देना बहुत प्रिय था, वे आगे बढकर बच्चों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते थे कि वे उनसे कुछ पूछे। एक बार ऐसा भी हुआ कि एक भाषण के दौरान लाईट चली गई तो वे बिना सुरक्षा बच्चों के बीच में जाकर भाषण देने लग गए। वे हमेशा कहा करते थे कि अपने आप से यह जरूर पूछे कि आप किस बात के लिए याद किया जाना पसंद करोगे?

अब्दुल कलाम की पुस्तकों के सहलेखक सृजनपाल सिंह ने जब उनसे पूछा कि आप क्या चाहेंगे कि विश्व आपकों किस रूप में याद करे? एक वैज्ञानिक, मिसाइलमैन, राष्ट्रपति, लेखक....... या कुछ और?
लेकिन कलाम ने जो जवाब दिया वह उनके सहलेखक को आश्चर्य में डालने वाला था। अब्दुल कलाम का जवाब था- मैं एक शिक्षक के रूप में याद किया जाना पसंद करूंगा।


3.    विलक्षण बुद्धि- अब्दुल कलाम गजब के वैज्ञानिक तो थे ही साथ ही उनकी सामरिक और प्रबंधन बुद्धि भी इतनी प्रखर थी कि उन्होनें 1998 में भारत को परमाणु शक्ति बना कर पूरे विश्व को अचंभित कर दिया। भारत 1995 में ही परमाणु बम का परीक्षण करना चाहता था। लेकिन अमेरिका के जासूसी उपग्रहों ने भारत की इस हरकत को पकड़ लिया और विश्व के दबाव में आकर भारत को परमाणु परीक्षण निरस्त करना पड़ा। जब 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आई तो उन्होने परमाणु बम के परीक्षण का निर्णय लिया लेकिन दुर्भाग्य से उनकी सरकार गिर गई। 1998 में वाजपेयी की फिर से सरकार आई और परमाणु बम के परीक्षण की योजना बनी। इसमें सबसे बड़ी चुनौती थी अमेरिका सहित विश्व के अन्य देशों के जासूसी उपग्रहों की नजरों से बचकर परीक्षण करना। इसके लिए परमाणु परीक्षण की कमान सौंपी गई उस समय के डीआरडीओं प्रमुख अब्दुल कलाम साहब और परमाणु उर्जा आयोग के चेयरमैन राजगोपाल चिदंबरम को। अब्दुल कलाम ने जासूसी सैटेलाइटों को धोखे में रखकर Nuclear Test की पूरी योजना बना ली। इसके लिए पूरे परमाणु परीक्षण के दौरान सभी वैज्ञानिकों ने फौजी वर्दी पहनी, और बकायदा सभी वैज्ञानिकों के नाम बदले गए। अब्दुल कलाम ने मेजर जनरल पृथ्वीराज के नाम से कार्य किया। परमाणु बमों को सेव की पेटियों में राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोकरण गांव में लाया गया, जहां से इसे खेतोलाई के परीक्षण नियंत्रण कक्ष तक पहुचाया गया। उसके बाद मई 1998 को एक के बाद एक पांच परमाणु विस्फोट

किए गये। उसके बाद कहीं जाकर दुनिया को पता चला कि भारत ने सफल परमाणु परीक्षण कर लिए है।


4.    युवा पीढ़ी को प्रेरणा- अब्दुल कलाम का मुख्य फोकस हमेशा युवा पीढी पर रहा। उनका मानना था कि युवा ही भारत का आधार था। उन्होंने कहा भी था कि भारत को अरबों की जनसंख्या वाले देश के रूप में सोचना चाहिए। युवाओं को प्रेरणा देने के लिए उन्होंने चार किताबे लिखी Wings of fire, India 2020- A vision for the new millennium, My journey and Ignited Minds: Unleashing the Power Within India.  राष्ट्रपति के पद से विमुक्त होने के बाद अब्दुल कलाम कई विश्वविद्यालयों, आईआईएम आदि में विजिटर लेक्चरर के तौर पर जाते थे। उनके व्याख्यान भारत में किए जाने वाले नए प्रयोग, सपनों को हकीकत में बदलना, भारत का विकास आदि पर केद्रिंत होते थे। वे अक्सर कहा करते थे - इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है।



5.    ईमानदार व्यक्तित्व- अब्दुल कलाम एक नेक दिल इंसान थे। उनकी ईमानदारी के कई किस्से है लेकिन सबसे प्रेरक किस्सा है जो उनकी ईमानदारी के साथ साथ प्रेम की भी अद्भुत मिसाल है। अब्दुल कलाम 2002 से 2007 तक प्रेसिडेंट रहे। इसी बीच 2006 में उनके परिवार वाले उनसे मिलने के लिए दिल्ली आए, यह कुल 52 लोग थे। कलाम ने उन सबकों बड़े स्नेह से रखा और उनकी आवभगत की। वे करीब 9 दिन तक राष्ट्रपति भवन में रहे। उनके जाने के बाद अब्दुल कलाम ने उनके 9 दिन रहने का किराया लगभग साढें तीन लाख रूपयें अपनी जेब से दिए और चेक काटकर राष्ट्रपति कार्यालय भिजवाया गया। यह बात उनके उनके सचिव नायर द्वारा लिखी गई किताब से दुनिया के सामने आई।


6.    इंसानियत की जीती जागती मिसाल- अब्दुल कलाम मुस्लिम थे, लेकिन उन्हें भारत के हर धर्म का व्यक्ति दिल से चाहता था। वे अपने आपकों सबसे पहले भारतीय मानते थे, उसके बाद धार्मिक। उनके प्रेसिडेंट कार्यकाल के दौरान 2002 में राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी के जगह उस पर होने वाले खर्च (लगभग 2.50 लाख) को अनाथालयों के बच्चों को खाद्य सामग्री, कंबल, कपड़े आदि बांटे गए तथा उन्होंने अपनी तरफ से भी एक लाख रूपयें इस कार्य के लिए सहयोग रूप में दिए। कलाम साहब नमाज पढ़ते थे और अक्सर हिंदू धर्मगुरूओं से उनके चरणों में बैठकर आशीर्वाद लिया करते थे।



7.     अंहकार से कोसों दूर और सादगी पूर्ण व्यवहार- राष्ट्रपति काल के दौरान कलाम आईआईटी बनारस के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। स्टेज पर पांच कुर्सिया रखी हुई थी जिसमें बीच वाली कुर्सी अन्य कुर्सियों से बड़ी थी जाहिर सी बात है यह कलाम साहब के लिए थी। अब्दुल कलाम ने जैसे ही वह कुर्सी देखी, उन्होंने उस कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया और कुलपति को वहां बैठने का आग्रह किया। लेकिन कुलपति उस कुर्सी पर नहीं बैठे। अंत में कलाम साहब के लिए दूसरी कुर्सी मंगवाई गयी, जो सामान्य आकार की थी। इस खबर ने पूरे देश का ध्यान खींचा और यह प्रेरणा दी कि भारत का सर्वोच्च नागरिक होते हुए भी कलाम साहब में कितनी शालीनता और विनम्रता है।



8.    भारत की जनता के प्रति समर्पित- राष्ट्रपति बनने के बाद अब्दुल कलाम ने अपनी सारी जमा पूंजी और तनख्वाह एक ट्रस्ट 'पुरा PURA (“Providing Urban Amenities in Rural Areas”)' को समर्पित कर दी। इस बात को सुनकर तत्कालीन वैज्ञानिक वर्गीज कुरियन ने उनसे जब इस बारे में पूछा तो कलाम साहब ने कहा कि चूंकि मैं अब राष्ट्रपति बन गया हूं इसलिए भारत सरकार मेरा ख्याल रखेगी फिर मैं इन पैसों का क्या करूंगा? अच्छा है यह देश की जनता के काम आ रहे है। उनकी देश के प्रति भक्ति अतुलनीय थी। अंतिम समय मे

भी उन्होंने अपने सहलेखकर सृजनपाल सिंह को कहा था कि उन्हें ऐसा कोई रास्ता खोजना होगा जिससे संसद में बहसबाजी कम और विकास पर चर्चा ज्यादा हो। इसी विषय पर वे शिलांग में अपने अंतिम भाषण के अंत में मैनेजमेंट के विद्यार्थियों से कुछ रचनात्मक उपाय भी जानना चाहते थे लेकिन इससे पहले ही उनकी सांसे रूक गई।



9.    संवेदनशील व्यक्ति- अब्दुल कलाम की संवेदनशीलता का अंदाज इस बात से ही लगाया जा सकता है कि डीआरडीओं के डायरेक्टर रहते हुए जब डीआरडीओं की सुरक्षा की बात चली तो सब का यहीं मत था कि उसकी दीवारों पर कांच लगा दिए जाए। लेकिन कलाम ने इसका पुरजोर विरोध किया और कहा कि ऐसा करने से दीवारों पर पक्षी नहीं बैठ पाएंगे और वे घायल भी हो सकते है। लिहाजा डीआरडीओं की दीवारों पर कांच नहीं लगाए गऐ.



10.    लगनशील व्यक्ति- यह कलाम साहब की लगन ही थी कि भारत एक मिसाइल संपन्न, उपग्रह प्रक्षेपण यंत्र संपन्न, परमाणु शक्ति राष्ट्र बन सका। जब यूरोपीय देशों ने भारत को मिसाइल की जानकारी देने से मना कर दिया तब इंदिरा गांधी ने कलाम को इसकी कमान दी और कलाम ने स्वदेशी तकनीक से नाग, पृथ्वी, आकाश जैसी बेमिसाल मिसाइलों से भारत को यूरोपीया देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। कलाम की योजनाओं के माध्यम से ही खुफिया तरीके से परमाणु परीक्षण किए जा सके और कलाम ने ही भारत का सबसे पहला उपग्रह प्रक्षेपण यंत्र पीएसलवी3 बनाकर भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता को खत्म कर भारत को एक आत्मनिर्भर देश बना दिया।

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